चेहरे.....मुखौटे.....जलाए.....
कितनी बार आखिर....और कब तक.....देखा गया हैं हर बार चार तत्वो(मिट्टी....जल....आग....हवा).... से बार बार पुतलो मे रिसाइकल होता रावण.....पर शुक्र है प्राण डलने से हर बार गगन मना कर देता....!!!
आखिर रावण-राम....अर्जुन-दुर्योधन....सारे दंत-कथाएँ अब दाँत से निकाल जिव्हा होकर सीधा सामाजिक परिवेश मे अवतरित हो रही हैं....!!
रामलीले...कितने गली कूचे मे पड़े....हर नुक्कड़-चौराहों मे एक रावण....क्या बात हैं.....???
रावण रिसाइकल होते गए मानो....और हो भी क्यों ना....
अहंकार ही तो "रावण" उसके बिना रावण का व्यक्तित्व बिलकुल पृथक....पर हम तो अहंकार बचा ले जाते और जला डालते....प्रकांड विद्वान...महा पराक्रमी रावण....!!!
अहंकार फूटता....पुतलो से और बरसता आस-पास जिसमे नहाकर कितने और रावण उत्पन्न हो जाते.....!!!
मिश्रा राहुल
(फ्रीलांसर लेखक)
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