आज बड़ी दिन बाद उन स्कूल के रास्ते पर गया....स्कूल मे सुपर सीनियर होने की वजह से मेरी जेनेरेशन के कोई बंदे तो नहीं दिखाई पड़े....
पर हाँ दिख गयी तो कुछ सड़के जो पुरानी थी तो पहचान गयी...बड़े बड़े पेड़ बाल सहला रहे थे....मानो पूछ रहे हो कैसे आना हुआ....!!
शॉर्ट-कट गली भी चिल्ला उठी...जैसे कोई पुराना यार मिल गया हो....!!
एक मेरी जैसी छवि साथ साइकिल चला रही थी....बगल मे....बस्ता टांगे...और बेबाक नज़रो से देख रही....पूछ रही....क्यूँ आखिर....कैसे आना हुआ....!!
आखिर क्यूँ भाग रहे....मोह माया की दलदल मे....जहां चाह न हो....अपनत्व न हो....प्रेम ना हो....बस द्वेष हो लोभ हो....!!
कितने पैसे दिये मैंने उस पवन को जिसने हल्के से मेरी लटों को कानो के पार पहुंचाया....कितने पैसे दिये मैंने उस....एहसास को जो मेरे कंधे पर चला आया....!!!
नहीं समझेंगे लोग....नहीं समझेंगे....!!
बस यूनिफ़ोर्म ही तो बदली है स्कूल की और शायाद कुछ ना बदला था....सब कुछ अपनी जगह....जैसे उन बच्चो की शक्ल मे मैं खेल रहा हूँ....!!!
मिश्रा राहुल
(फ्रीलांसर रायटर)
No comments:
Post a Comment