आजकल सिल्वर-स्क्रीन इतना गंदा हो गया हैं कि अब हमारे जुबान ना ही खुलवाओ तो बेहतर। आजकल कोई निर्देशक समाज से जुड़ी बातों पर फिल्म तो दूर समाज की बीमारियों पर फिल्म बनाए जा रहे....और हाँ कुछ सड़कछाप पब्लिक उन्हे देखती भी हैं। तभी तो तीन दिन मे सैकड़ो रेकॉर्ड टूटते....अभी एक न्यूज़ चैनल के माध्यम से पता चला कि 'सत्याग्रह' तीन दिन में लागत जितना नहीं कमा पाई।
क्या कमाना ही आजकल सब कुछ हैं...फिल्म होती हैं संदेश हो....जिसमे....दमदार अभिनय हो....एक उत्कंठा हो फिल्म देखने के बाद...पर शायद समाज सुधारने का ठेका केवल प्रकाश झा साहब ने ही लिखा रहा हैं...तभी तो अन्य निर्माता-निर्देशक इस पर ध्यान नहीं देते।
खैर जो भी हो प्रकाश झा आप आपने मिशन मे लगे रहे आपकी छवि इन सड़ियल छाप लोगो से तुलना योग्य नहीं...!!!
मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
कोई तो ऐसा हो जो केवल सस्ती वाह-वाही और पैसा बनाने के उद्देश्य से ऊपर उठे !
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