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Wednesday, September 25, 2013

हिन्दी द्वेष


महात्मा गाँधी ने कहा था की अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिये ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता समझता है। मगर आज जितना प्रयास हिन्दी को बचाने के लिए किया जा रहा है, उससे कही ज्यादा जोर अंग्रेजी को बढाने के लिए हो रहा है।
शायद पशिचम की तरफ भागना ही आज के दौर मे चारित्रिक उत्थान का प्रतीक माना जाने लगा है। जिस देश के लोग अपनी राष्ट्रभाषा को अपनाने मे कतराने लगे है वहां कोर्इ आजादी क्या मायने रखेगी...??
संस्कृत मां, हिन्दी गृहिणी और अंग्रेजी नौकरानी है, ऐसा कथन डा. कामिल बुल्के का है। आज हमारे देश मे देवभाषा और राष्ट्रभाषा की दिनो दिन दुर्गती होती देख मन मे यही विचार आता है कि क्या आज के समय मे मां और गृहिणी पर नौकरानी का प्रभाव बढता जा रहा है?
सौजन्य:पत्रिका

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