रुपये ने आज सबको इतना गिरा दिया हैं कि गाने संवादों मे उसकी झलक दिख ही जाती....!!!
कहने को तो दोनों ज़ंजीर की पटकथा एक सी ही हैं और कुछ फेसबुकिया समीक्षक जाने कितने तारे पहना भी चुके हैं पर हमको एक बात खटक रही है फिल्म मे....!!!
11 फ्लॉप फिल्मों का दर्द दिल में लिए अमिताभ बच्चन जब पर्दे पर उतरे थे तो मानो वह अपनी आखिरी जंग लड़ रहे थे। उस दमदार विजय की इस नए विजय से कोई बराबरी नहीं है।
और गाने तक मे फेरबदल....
दीवाने हैं...दीवानों को न घर चाहिए, न दर चाहिए मुहब्बत भरी इक नजर चाहिए…नजर चाहिए....!!!आज नई जंजीर में एक गीत है, जिसमें पर्दे पर कूद कूद कर नाचती प्रियंका चोपड़ा कहती हैं कि, दिल्ली की न मुंबई वालों की पिंकी है पैसे वालों की, पिंकी को तो कैश चाहिए....!!!
दोनों फिल्मे तुलना योग्य ही नहीं हैं....बस पुरानी बोतल में नई शराब भर के दर्शकों को मार्केटिंग के दम से सिनेमाघर तक खींचने की नाकामयाब कोशिश की जा रही है....!!!
मिश्रा राहुल
(ब्लोगीस्ट एवं लेखक)
(कुछ विचार ऋषि मिश्रा भैया के लेख से उद्घृत)
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