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Friday, December 13, 2013

अनसन पर मंथन:


जन-लोकपाल....
अन्ना जी के गाँव जाने वालों की कतार तो काफी लंबी है पर अब राजनीति के गन्ने पीसने वाले ठेले वहाँ जाने मे हिचक रहे....क्यूंकी अन्ना जी ने साफ कर दिया है कि राजनीति मे कदम रखते ही उन सारे लोगों के लिए अब उनका मंच नहीं बचा....!!!
अन्ना की साख के पीछे अपनी रोटी सेंकने सभी पार्टी के दो-चार धुरंधर रालेगण सिद्धि पहुँच रहे....आखिर कब तक ऐसे चलेगी राजनीति....!!!
कल गोपाल राय को देखा....इतने जल्दी अगर आप आक्रोशित हो उठेंगे तो देश के समग्र विकास की जो स्वप्न आपने दिल्ली वासियों को दिखाया है....वो कैसे प्राप्त करेंगे.....!!!
काफी ऊंचाई पर पहुंचे व्यक्ति को कभी आप क्रोधित होते नहीं देखे होंगे.....सफलता का प्रथम पायदान ही क्रोध का परित्याग हैं.....वैसे गीता ने क्रोध को काफी अच्छा परिभाषित किया है....!!!
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क्रोधाभवति संमोहः संमोहात्स्मृति विभ्रमः
स्मृति भ्रंशाद बुद्धिनाशों बुद्धिनाशा प्रण्श्यति।
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अर्थात: क्रोध से अत्यन्त मूढ़ भाव पैदा हो जाता है। मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है,बुद्धि के नष्ट हो जाने से व्यक्ति ही नष्ट हो जाता है।
बात सिर्फ जन-लोकपाल न लाने की नहीं बल्कि ठगने की भी हैं और इसमे केवल अन्ना जी ही नहीं ठगे गए......बल्कि ठगे गए पूरे सवा अरब भारतवासी.....अन्ना तो बस एक जरिया है....!!!
- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)

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