यह एक क्रिया हैं या फिर कला...आजकल क्रिया से ज्यादा इसे कला के रूप मे प्रयोग किया जा रहा...!!
ये हुआ सो "शर्म" की बात हैं... वो हुआ तो "शर्मनाक" हैं...!!
नेता अफसरो ने तो "शर्म" को सार्वजनिक थोक उत्पादन कर रहे....पर गौरतलब हैं सबसे कम "शर्म" उन्हे ही आती हैं....!!
आजकल तो "शर्मोत्सव" दिखते थोक थोक के भाव शर्म...जिनके पास ताकत हैं...वो भी "शर्म" को परिभाषित करते...बिपक्षी शर्म को ढाल रूप मे प्रयोग करते...!!
अब हम लेखक लिखे तो कितना और फर्क क्या पड़ता लोगों पर...2 जी...3 जी...ताबूत...अगस्टा....जेपीसी...सीडबल्यूजी...संजय दत्त... बिजली-पानी-कोयला....!!
और और कितनी "शर्म"...!!
अब तो "शर्म" भी सोना मांग रहा...पर माहोल देखिये सोना भी "शर्म" जितना ही गिरा पड़ा हैं...!!
ReplyDeleteजब तीन यार मिल जाएँ तो होगा धमाल
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