अगर आप भारतीय दंड संहिता के बारे मे पढ़ेगे तो चौक जाएंगे। इसके बहुत सी धाराए पुरानी हैं।वक़्त के साथ बहुत कुछ बदला पर 100 साल से पुराने लगभग 200 कानूनों को बदलने या खत्म करने की प्रक्रिया कछुए की गई से चल रही।
पी सी जैन के कमेटी की रिपोर्ट मे पाया गया की 1382 कानूनों को बदले जाने की आवश्यकता हैं। इनमे अभी 415 को ही परिवर्तित रूप प्रदान किया गया हैं। 17 प्रक्रिया मे हैं और 9 जांच के दौर से गुजर रहे। मतलब साफ हैं अभी 50 फीसदी से अधिक कानूनों पर तो निगाह ही नहीं गई।
तो अब वक़्त आ गया हैं अग्रेजों के समय बनाए गए कुछ कानूनों मे संसोधन करने का।
महज़ कठोर कानून बनाने से देश को अपराध मुक्त नही बनाया जा सकता अपितु आंतरिक परिचर्चा से कुछ हद तक रोका जरूर जा सकता हैं।
कानून तो एक पहलू हैं और इसके क्रियानवान मे अभियोजन पुलिस तंत्र अहम भूमिका निभाते हैं।
कुछ तो ऐसे मुकदमे हैं जो दसको से न्यायालया की दुवार पकड़े हैं।
कुछ मुद्दो पे गहन चर्चा हो तो काफी दिक्कते हल हो जाएंगी।
#अपर्याप्त संसाधन
#राजनीतिक हलचल
#औपनिवेशिक ढांचा
#लंबित पुलिस सुधार
और इनको मजबूत करने पर ही कोई भी कानून अपने रंग ढंग से अपराधियों की खबर लेगा।
मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
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