ताऊ हो या चाचू...बुआ हो या अम्मा...सबकी अपनी स्टाइल हैं कुछ समझाने की...!!
चाहे वो सोठ-हल्दी वाली कड़वी चाय हो या फिर नीम की पाती पिसी चटनी....खैर जो भी हो काफी दिनो से चला आ रहा सो अब आदत सी हो गयी है...!!
पर शायद मैं ये पहला नहीं हूँ....जिसे एक सलाहकार/मार्गदर्शक की कमी खली हैं...ये भारत की ही कहानी हैं...!!
विचारो की स्वतन्त्रता मैं शायद 1 फीसदी घरो मे ही देखा हूँ बाकी मे तो सपने थोपे जाते...!!
बाबूजी कहते "मैं आईएएस नहीं बन पाया कोई नहीं मेरा लड़का बनेगा...."
क्या कोई उस लड़के से पूछा की उसकी इक्षा क्या हैं...नहीं...ना..!!
फिर भी अगर भूले भटके पूछ भी लिए तो बड़ी बड़ी दलील सामने आएगी...
जैसे:
--अब तू ये करेगा/करेगी...
--ये करेगा/करेगी तब तो बिरादरी मे मेरी नाक कट जाएगी...
--खुद तारीफ़ों के पुल बाधेंगे मकबूल फिदा हुसैन के और लड़की/लड़का बोला मुझे आर्टिस्ट बनाना तो बस घर मे हो गयी घमाशान...
मैं खुद एक माध्यम वर्ग का लड़का हूँ....अंधा नहीं हूँ....देखता हूँ हलचल अपने अगल बगल...!!!
खैर आप लोग अब इसे लाइक कर चले जाएगे ये पोस्ट भी नीचे कहीं खो जाएगा पर क्या आप खुद से पूछेंगे ये सवाल...!!
आखिर कब तक ये....???
मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट और लेखक)
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