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कभी लिखता था शायद पर आज मिटता जा रहा हैं की-पैड....चमकते टच स्क्रीन की-पैड के बढ़ते चाल मे यांत्रिक की-पैड को जाने कितने पीछे छोड़े दिया...!!!
कल हमने अपने मित्र को फोन दिलाने पहुंचा उन महोदया का बजट दमदार था पर...शायद वो जबर्दस्त टेकस्टिंग करती हैं इस लिए क्वर्टी की-पैड से सम्झौता करने के पक्ष मे नहीं थी...!!
बड़ी देर ढूँढने के भी यह दिखाना मुश्किल हो रहा था...और दुकान वाले भाई मनाने मे जुटे थे...काफी दलील रख रहे थे कंपनियों ने की-पैड वाले बाबा आदम जमाने के बेढंगा फोन बनाने बंद कर दिये हैं... आज सब कुछ स्मार्ट हैं और आप भी स्मार्ट बनिए...इतने मे महोदया तनना गयी...खैर हम अब दूसरे दुकान पर तशरीफ़ रखे पर नतीजा बिलकुल समान...महोदया का मूड ऑफ कहा दूसरे दिन लूँगी फोन-सोन पर मैं कहाँ रुकने वाला था आज पूरी छानबीन हो गयी....!!!
ज़रूरत क्या पड़ गयी:
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आज कल मोबाइल मोबाइल नहीं रह कर और बाकी सारे आइटम बन गए हैं...औसतन आदमी अपने सेल फोन से बात कम ड्रामेबाजी ज्यादा करते...जैसे गेम...विडियो...डॉकयुमेंट एडिटिंग...और भी जाने क्या क्या मतलब साफ हैं मोबाइल कम्प्युटर बनने लगा हैं...और जगह छोटी हैं...तो बेचारे की-पैड को ही कब्रिस्तान पहुँचा दिया...!!
स्टाइलस से उंगली
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पहले रेसिस्टीव टच होते थे तब स्टाइलस से काम चलाना पड़ता था पर आजकल कपिसिटिव टच आने से लोग स्टाइलस भी हटा उँगलियों से ही काम कर रहे...!!
आखिर कंपनियाँ ये कैसे कर सकती हैं मेरे साथ बहुत से लोग ऐसे हैं जो की-पैड मे ज्यादा सहज महसूस करते हैं...और क्यूँ ना करे ढाबे पे समोसा चटनी खाते वक़्त क्या आप अपना स्क्रीन छूना पसंद करेंगे बिना हाथ धुले.... बोलिए...नहीं ना..!!
मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
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