अभी चवन्नी का दर्द गया नहीं था कि एक और झटका लगा...!!
15 जुलाई 2013 को 160 बरस का तार आखिरकार काट दिया जाएगा...!!
मीलों के फासले को गिनती के शब्दों से पाटने वाले तार का आखिरी खत आ गया है।
जाने कितनों की खुशी...कितनों के दर्द साथ लिए रहता तार...मोर्श कोड (डॉट-डैश) तकनीक पर चलता तार आजकल ईमेल-एसएमएस आने से खुद को ठगा ठगा महसूस कर रहा था...पर कम्युनिकेशन की इस ऊंची इमारत में कहीं न कहीं तार की नींव डली है...!!!
टेलीग्राम, भले टेलीफोन से हार मान गया हो... लेकिन अपनी शोहरत के दौर में उसका गजब का जलवा रहा...!!
फिलहाल कुल टेलीग्राम में से केवल 25 फीसदी आम जनता के होते हैं...पांच फीसदी कारोबार संबंधी और शेष 65 फीसदी सरकारी टेलीग्राम होते हैं...एक वक्त था...जब यह तादाद हजारों-लाखों में थी...!!
आने वाली पीढ़ी नहीं जानेगी पर उसकी असीम विरासत इतिहास के पन्नों में सजीव रहेगी
अलविदा तार...!!!
मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट और लेखक)
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