बहुत खूब प्रसून जोशी...क्या बात हैं...आपकी कोई भी लय बिना तुक के नहीं होती...!!
हाँ ये वो शब्द थे जब बटवारे के समय मिल्खा सिंह जी के बाबूजी से उनकी कानो मे फूंके थे...!!
मिल्खा सिंह...शायद नाम ही काफी होगा...उड़ान सिख...!!
ध्यानचंद...लाला अमरनाथ...मिल्खा सिंह...हमारी इतिहास भरी पड़ी है धुरंधरों से...!!
मिल्खा तो अपने आप मे ही प्रेरणा श्रोत हैं...1960 की रोम ओलंपिक के दस्तावेज़ बखूबी बयान करती हैं उनकी कहानी...जिसमे अचानक फिसलकर गिरने से वे पहले स्थान से खिसक कर चौथे पर गिर पड़े थे...और भारत को मेडल दिलाते दिलाते रह गए...!!
बाकी सब कुछ ठीक हैं फरहान अख्तर काफी होनहार हैं...साथ मे प्रसून जोशी की जोश होश से भरी संगीत रचना...!!
वाह क्या चटखारा होगा कसम से...तो सुन भी लो "जिंदा"...!!
मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट और लेखक)
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