बादशाहों का बादशाह हूं, मैं रुपया हूं...
मैं लड़कों के लड़कपन का खिलौना हूं, मिठाई हूं
मैं जवानों की जवानी की जान हूं, मस्ती हूं
मैं बूढों की बुढोथी की लकड़ी हूं, सहारा हूं
जमीनदार मैं हूं, बादशाह मैं हूं, बादशाहों का बादशाह मैं हूं, मैं रुपया हूं...
महान कवि पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' के शब्दों में रुपये की ताकत समय के साथ और ताकतवर होती गई है। आज हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में रुपया इस कदर घुलमिल गया है जैसे कोई हमसफर हो। समय के साथ-साथ रुपये ने अपने व्यक्तित्व में कई तब्दीलियां की। अब कागज वाला रुपया नए रंग-रूप में आपके सामने होगा, जिसे आप किसी भी तरह रख सकेंगे |
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