क्षमा, दया , ताप , त्याग , मनोबल सबका लिया सहारा ..
पर नर व्याघ सुयोधन तुमसे कहो कहाँ कब हारा .. ?
क्षमाशील हो ॠपु-सक्षम तुम हुए विनीत जितना ही ..
दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही ..!!
अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है ..
पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है ..!!
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है ..
उसका क्या जो दंतहीन विषरहित विनीत सरल है ..!!
तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिन्धु किनारे ..
बैठे पढते रहे छंद अनुनय के प्यारे प्यारे ..!!
उत्तर में जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से ..
उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से ..!!
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि करता आ गिरा शरण में ..
चरण पूज दासता ग्र्र्हन की बंधा मूढ़ बंधन में ..!!
सच पूछो तो शर में ही बस्ती है दीप्ति विनय की ..
संधिवचन संपूज्य उसीका जिसमे शक्ति विजय की ..!!
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है ..
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है ..!!
कारगिल शाही सौरभ कालिया का मामला अभी ठंडा हुवा नहीं था कि इन नीचों ने फिर डंसा..हाँ आज यूवा दिवस हैं .. विवेकानन्द जी के पवन जनमदिन पर ... उन्होने भी कहा था उठो जागो, रुको नहीं... उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये .. अपनी असीम उर्जा .. अथक लगन और चरम सीमा पर पहुचने की ललक ही युवावाथा की जान हैं .. !!
एक कवच हैं साथ की बस एक बार भारत माँ के लिए जीवन लुटा आऊं .. पाकिस्तान नीच हैं उसे दंड देना अनिवार्य हैं .. और माखनलाल चतुर्वेदी जी की कुछ पंक्तियों साथ मैं अपने सब्दो को विराम देता हूँ...!!
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूथा जाऊँ..
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को लाल्ल्चौं..!!
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं ..
चाह नहीं देवों के सर चढू और भाग्य पर इतराऊँ..!!
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना फ़ेंक..
मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जायें वीर अनेक..!!
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