66 वर्षो की सिलवटें:
कभी कभी ये सोचता मैं....क्या यह वही भारत है जो 66 साल बाद भी डांवाडोल मुद्रा और भीषण गरीबी से जूझता आ रहा है.....और जहां जश्नोगुबार, ललकार और हुंकार के समांतर उतना ही गहरा अवसाद और सन्नाटा फैला हुआ है.....ये इतने सारे बरस तरक्की और उधेड़बुन, जश्न और उदासी का बड़ा कोलाज बनाते है.....!!!
विमानवाहक युद्धपोत विक्रांत का अनावरण.....पुंछ में भारतीय सैनिकों पर हमला और किश्तवाड़ में दंगा...एक देश की आजादी के 66 साल के सफर का एक कदम आगे दो कदम पीछे इन घटनाओं में नजर आता है....!!
5 अरब डॉलर की लागत से बना विक्रांत...बताते हैं भारत को दुनिया के उन चुनिंदा देशों में ले आया है जिनके पास अपना ऐसा युद्धपोत है....दक्षिण एशिया तो छोड़िए समूचे एशिया महाद्वीप में भारत की सैन्य सामर्थ्य ने ऊंची छलांग लगा ली है....!!!
पर काश ये 5 अरब डॉलर 66 साल के मौके पर देश के अत्यन्त पिछड़े और गरीब तबकों में चले जाते तो उनका जीवन स्तर सुधर जाता....वो भी तो भर सके उड़ान उन रंग बिरंगे जहाज़ो से...!!!
हिंदी कवि "रघुबीर सहाय" ने अपनी एक कविता में पूछा थाः
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत भाग्य विधाता है....
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है...!!!
जय हिन्द//मिश्रा राहुल
(ब्लोगीस्ट एवं लेखक)
आंकड़े स्त्रोत:इंटरनेट
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