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# हम प्रैक्टिस नहीं करते रटते रहते हैं ताकि एक्जाम क्लियर कर सके....!!!
जैसे एमबीबीएस और लॉं के छात्र करते हैं...अरे हम तो नवाब हैं प्रैक्टिस कहाँ करेंगे...हमे तो चाहिए बस नौकरी का टिकिट... हम ज्ञान के लिए कम नौकरी खातिर ज्यादा प्रयासरत रहते...!!!
# घर पर बैठे गार्जियन का हर वक़्त प्लेसमेंट का दबाओ...!!
इंडस्ट्री को चाहिए प्रकटिकल छात्र और यहाँ तो तीसरे वर्ष पहुँचते-पहुँचते घर से तार जुडने लगते की कितनी सैलरी हैं प्लेसमेंट हुआ की नहीं और भी बहुत कुछ....!!!
# टीचरो की दुर्व्यवस्था...!!
यहाँ तो टीचर अपने मन से कम धन के अभाव के कारण ज्यादा उपस्थित रहते फिर उनका मन धन मे और बच्चो का भविष्य अंधकार मे घुस जाता... यूके मे टीचर के पास इंडस्ट्री के अनुभव होते जो वे छात्रो से बांटते हैं....!!!
# किताब या इंजीन्यरिंग...!!
यहाँ मूल्यांकन पद्धति किताबों पर आधारित हैं और छात्र वही करता...अच्छे अच्छे अंक तो ले आता पर वजूद कुछ ना रहता...
बाहर किताब एक साधन हैं बस यही कुछ 25 फीसदी हिस्सा बाकी समय छात्र इंडस्ट्री एप्लिकेशन देखते रहता....!!
मिश्रा राहुल
(ब्लोगीस्ट और लेखक)
(प्रोफेसर शेखर शनयाल के भाषण का कुछ अंश)
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