अगर आप अरविन्द केजरीवाल जी के बारे में जानना चाहते हैं, कि क्यों आज इस इंसान के पीछे सारा देश खड़ा है तो कृप्या इस लेख को जरुर पढ़े.
कहते हैं, किसी इंसान के नाम में, उसकी पूरी शक्सियत छिपी होती है. भ्रस्टाचार कि लडाई में अन्ना का साथ देने वाले अरविन्द केजरीवाल भी अब पूरे देश में छाए जा चुके हैं, 43 साल के इस शख्स को लोग सुनना चाहते हैं देखना चाहते हैं. अपने तर्कों के जरिये सरकार के तमाम दावो कि धज्जियां उड़ा देने वाले अरविन्द केजरीवाल उस युवा भारत कि तस्वीर हैं जो हमारी और आपकी किस्मत बदलने के लिए दिन रात एक कर रहा है, अरविन्द का मकसद है इस देश के सड़ चुके सिस्टम को बदलना क्योंकि इसी सिस्टम के बीच रहकर अरविन्द केजरीवाल ने बहुत बारीकी से सारी बातें समझी हैं वक्त के साथ वो खुद बदले हैं. और अब देश में शासन का मतलब बदलना चाहते हैं जिन हालातों में अरविन्द केजरीवाल को यहाँ तक पहुचाया है वो एक सबक है आखिर जिंदगी सिर्फ जीने का नाम तो नहीं है अरविन्द केजरीवाल को जीने का नया मकसद मिला IIT खड़गपुर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद , देश के नामी संस्थान से इंजीनियरिंग करने के बाद अरविन्द के बहुत सारे साथी विदेश जा रहे थे नौकरी करने के लिए पैसा कमाने के लिए, लेकिन केवल 21 साल के अरविन्द के दिमाग में कुछ ऐसा चल रहा था जिसने उन्हें बाहर जाने से रोक दिया अरविन्द ने सोचा आखिर क्यों जाऊ ये मेरा देश है और मुझे इसके लिए काम करना है इसी उधेड़बुन में उन्होंने टाटा स्टील में असिस्टेंट मेनेजर की नौकरी शुरू कर ली.लेकिन यहाँ उनका मन नहीं लगा और सोचा MBA करे या सिविल सर्विसेस, और जीत दिमाग की नहीं दिल की हुयी, मन देश के लोगो में लगा था और उसका जरिया बनी सिविल सर्विसेस. 1992 में अरविन्द केजरीवाल ने सिविल सर्विसेस का इम्तिहान दिया और लिखित परीक्षा में आसानी से कामयाब भी हो गए. लेकिन एक दिन अचानक भिवानी स्थित अपने घर पहुंचे और यह कह कर सबको चोंका दिया की में कुछ दिन के लिए घर छोड़ना चाहता हूँ मेरी चिंता मत करियेगा, में जहाँ भी रहूँगा ठीक रहूँगा उनके इस फैसले से उनकी माता गीता देवी और उनके समस्त घर वाले परेशान हुए लेकिन अरविन्द नहीं माने इसी बीच अरविन्द ने काफी सोचा कहाँ जाऊ किस्से मिलूं, ठन्डे दिमाग से सोचने के बाद असम के लिए ट्रेन पकड़ी लेकिन एक जादुई सी शक्ति उन्हें खीचते हुए कोलकाता तक ले आई जब होश संभला तो अरविन्द ने अपने आप को एक लाइन में लगा पाया, वहां सेकड़ों लोग मदर टेरेसा से मिलने का इन्तेजार कर रहे थे अरविन्द की बारी आई तो उन्होंने मदर टेरेसा से सिर्फ इतना कहा की माँ में आपके साथ कुछ काम करना चाहता हूँ मदर टेरेसा ने अरविन्द का हाथ थामा और बोली जाओ कुछ दिन काली बाड़ी में काम करो कोलकाता से अरविन्द केजरीवाल का बहुत भावनात्मक रिश्ता है एक 24 साल के नौजवान में इतना बूता होता है की टाटा स्टील जैसी नामी कंपनी से इस्तीफ़ा दे दे, सिविल सर्विसेस में चुने जाने के बाद घर छोड़ दे लेकिन अरविन्द केजरीवाल तो अपनी धुन में पक्के थे एक जज्बा था जो उन्हें कोलकाता तक ले आया मदर टेरेसा के आश्रम में अरविन्द केजरीवाल करीब दो महीने तक रहे, पैदल चलते चलते कोलकाता की सारी सड़कें नाप दी, जो गरीब बेसहारा उन्हें सड़क के किनारे पड़े नज़र आते उन्हें मदर टेरेसा के आश्रम में ले आते, यहाँ अरविन्द ने सीखा की जो बीमार हैं लाइलाज हैं उन्हें भी इज्जत से मौत पाने का अधिकार है, इसलिए जब तब हो सके उसकी सेवा करो कोलकाता की गरीबी और व्यवस्था की जवाबदेही ने अरविन्द केजरीवाल को झकझोरे के रख दिया कुछ दिनों के लिए उन्होंने राम कृष्ण मिशन में अपना हाथ बढाया, घर से दूर उस एहसास को जिया की घर न होने का मतलब क्या होता है, गरीब का मतलब क्या होता है, और देश के आम नागरिक को नर्क में धकेलते जा रहे सिस्टम का मतलब क्या होता है, करीब 6 महीने तक असम और पश्चिम बंगाल में रहने के बाद उन्होंने हरियाणा में कुछ दिन नेहरु युवा केंद्र के लिए भी काम किया इस बीच घर वालों ने खोजते खोजते उन्हें ये सन्देश पहुंचा ही दिया की सिविल सर्विसेस के इन्टरवियू की तारीख आ गयी है केजरीवाल घर पहुंचे इन्टरवियू दिया और कल तक कोलकाता की गलियों की खाक छान रहा ये शख्स इंडियन रेवेन्यु सर्विसेस के लिए चुन लिया गया. केजरीवाल ने पहला पद सम्भाला देश की राजधानी दिल्ली में अब वो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट कमिश्नर थे, भारी भरकम पद भारी भरकम रुतबा और उम्र सिर्फ 24 साल जल्द ही केजरीवाल को एहसास हो गया की वो गलत जगह पहुच गए हैं अरविन्द अपने साथियों से लगातार अपनी चिंता के बारे में बताते रहे लेकिन सभी ने यही सलाह दी की जल्दबाजी में कोई गलत फैसला न लो. वक्त बीतता गया केजरीवाल भीतर से छट पटाते रहे लेकिन वोह इस सिस्टम का हिस्सा बनने को तैयार नहीं थे नौकरी के 8 सालो ने अरविन्द में ये समझ पैदा की कि सरकारी सिस्टम कैसा काम करता है कैसा आम आदमी कि फाईले सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटती रहती हैं अरविन्द केजरीवाल ने बदलाब कि शुरुआत अपने घर से ही की, आयकर विभाग में फैली गंदगियों को सुधारने का बीड़ा उठाया हर किसी की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आता है जिसमे लिया गया फैसला आने वाली जिंदगी तय कर देता है केजरीवाल के लिए ये वक्त था साल 2000 का एक रात ऐसे ही उन्होंने अपने भाई और अपने रिश्तेदार से 50 हज़ार रुपये उधार लिए और परिवर्तन नाम कि संस्था कि नीव रख डाली, मकसद उन लोगो कि मदद करना था जिन्हें आयकर विभाग में छोटे छोटे काम के लिए घूस देनी पड़ती है अब अरविन्द केजरीवाल ने नौकरी में रहते हुए ही बिना अपना नाम सामने लाते हुए लोगो कि मदद करना शुरू की सिर्फ डेढ़ साल में परिवर्तन ने बिना घूस दिए 800 लोगो कि शिकायतें सुलझाई और अपने सीनिअर अफसरों को ये पता तक नहीं चलने दिया कि उनके बीच का ही कोई शख्स आम आदमी को इन्साफ दिला रहा है हांलाकि कुछ महीने बाद ही केजरीवाल को एहसास हो गया कि नौकरी और परिवर्तन दोनों एक साथ नहीं चल सकते हर तरफ भ्रस्टाचार था हर विभाग में भ्रस्टाचार था जो लोग पहले दलालों के पास जाते थे वोह अब बिजली, पानी, राशन कार्ड कि दिक्कतें लेकर उनके पास आने लगे, अरविन्द केजरीवाल को यहाँ जिंदगी का दूसरा और अहम् सबक मिला लोगो को खुद अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा संस्थाएं फौरी तौर पर तो मदद कर सकती हैं लेकिन समस्या को जड़ से ख़त्म करने के लिए आम आदमी को ही आगे आना होगा. इस हालात में अब आगे क्या अरविन्द केजरीवाल इस सवाल से उलझ ही रहे थे कि 2001 में दिल्ली सरकार ने सूचना का अधिकार कानून पास कर दिया. सूचना का अधिकार केजरीवाल के लिए बड़ी उम्मीद लेकर आया लेकिन जब अपने इस अधिकार के जरिये उन्होंने कुछ महकमों से जानकारी मांगी तो जबाब मिला कि महकमों को कानून का पता ही नहीं है दरअसल सरकार ने कानून बना तो दिया लेकिन उसे अमल में लाने के आदेश जारी ही नहीं किये. बिना तनख्वा के छुट्टी पर चल रहे अरविन्द केजरीवाल धरने पर बैठ गए, दबाब में आई सरकार को आखिरकार नोटिस जारी करना पड़ा अब केजरीवाल के पास अब तक का सबसे बड़ा हथियार था. दो साल से बिजली कन्नेक्शन नहीं लगा RTI डालो दस दिन में बिजली कन्नेक्शन लगेगा राशन कार्ड नहीं बना RTI डालो राशन कार्ड घर देकर जायेंगे वो भी बिना घूस. अरविन्द केजरीवाल ने घर -घर जाकर सुचना के अधिकार कानून के बारे में लोगों को समझाना शुरू किया जो अफसर फंसते वो उनका विरोध भी करते लेकिन बुलंद होंसले वाला इस शख्स ने कभी परवाह नहीं की जब एक दिन उनके एक साथी का गला काट दिया गया तब केजरीवाल को हकीकत का अंदाजा हुआ अगर सूचना का अधिकार कानून उन आम आदमी की मदद करता है तो हमारा ताकतवर सिस्टम उसका उतना ही विरोध भी करता है . केजरीवाल ने हिम्मत नहीं हारी वो लोगों को RTI एक्ट का फायदा उठाने के लिए समझाते रहे, लोगों में परिवर्तन होता उन्हें दिखा भी, 2004 के आसपास का वक्त था जब सियासी हलकों और प्रशासनिक अमलें, केजरीवाल को आयकर विभाग के जोइंट कमिश्नर के पद से ज्यादा एक RTI कार्यकर्ता के बारे में जाना जाने लगा, कुछ महीनो बाद ही केजरीवाल ने नौकरी के बंधन से मुक्ति पा ली, जब जंग लड़ना ही तो बंधन क्यों उन्होंने अपना आन्दोलन जारी रखा और कहा की सूचना का अधिकार पुरे देश में लागू किया जाये, आम आदमी के बीच जाकर केजरीवाल ने RTI एक्ट के समर्थन में माहोल बनाना शुरू कर दिया, नतीजा ये की आखिरकार साल 2005 में संसद ने सुचना का अधिकार पास कर दिया, केजरीवाल के कारण अब देश के आम आदमी के पास इतनी ताकत थी की वो अफसरों की नींद कुछ देर के लिए ही सही, उड़ा सकती थी, उनको जबाबदेह बना सकती थी. केजरीवाल ने शहर- शहर जाकर नौजवानों को इस कानून की बारीकियां समझायी, इस आन्दोलन की सफलता के चलते केजरीवाल को साल 2005 में मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया, CNN IBN ने उन्हें साल 2006 में इंडियन ऑफ द इयर का अवार्ड भी दिया. लेकिन परिवर्तन की जिद में केजरीवाल आगे ही बढते गए, मैग्सेसे पुरस्कार से मिले 45 लाख रुपये से उन्होंने एक दूसरी संस्था खडी कर दी नाम दिया पब्लिक कोंज रिसर्च फोंडेसन, संस्था देश भर के लोगो को RTI ACT व् तमाम दुसरे कानूनों से जुडी जानकारियों के बारे में समझाने का काम करती है
अगर एक कानून ने केजरीवाल की जिंदगी बदल डाली, तो वो अब जन लोकपाल के जरिये देश को बदलना चाहते है और उसके लिए आपका साथ चाहते है.
कहते हैं, किसी इंसान के नाम में, उसकी पूरी शक्सियत छिपी होती है. भ्रस्टाचार कि लडाई में अन्ना का साथ देने वाले अरविन्द केजरीवाल भी अब पूरे देश में छाए जा चुके हैं, 43 साल के इस शख्स को लोग सुनना चाहते हैं देखना चाहते हैं. अपने तर्कों के जरिये सरकार के तमाम दावो कि धज्जियां उड़ा देने वाले अरविन्द केजरीवाल उस युवा भारत कि तस्वीर हैं जो हमारी और आपकी किस्मत बदलने के लिए दिन रात एक कर रहा है, अरविन्द का मकसद है इस देश के सड़ चुके सिस्टम को बदलना क्योंकि इसी सिस्टम के बीच रहकर अरविन्द केजरीवाल ने बहुत बारीकी से सारी बातें समझी हैं वक्त के साथ वो खुद बदले हैं. और अब देश में शासन का मतलब बदलना चाहते हैं जिन हालातों में अरविन्द केजरीवाल को यहाँ तक पहुचाया है वो एक सबक है आखिर जिंदगी सिर्फ जीने का नाम तो नहीं है अरविन्द केजरीवाल को जीने का नया मकसद मिला IIT खड़गपुर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद , देश के नामी संस्थान से इंजीनियरिंग करने के बाद अरविन्द के बहुत सारे साथी विदेश जा रहे थे नौकरी करने के लिए पैसा कमाने के लिए, लेकिन केवल 21 साल के अरविन्द के दिमाग में कुछ ऐसा चल रहा था जिसने उन्हें बाहर जाने से रोक दिया अरविन्द ने सोचा आखिर क्यों जाऊ ये मेरा देश है और मुझे इसके लिए काम करना है इसी उधेड़बुन में उन्होंने टाटा स्टील में असिस्टेंट मेनेजर की नौकरी शुरू कर ली.लेकिन यहाँ उनका मन नहीं लगा और सोचा MBA करे या सिविल सर्विसेस, और जीत दिमाग की नहीं दिल की हुयी, मन देश के लोगो में लगा था और उसका जरिया बनी सिविल सर्विसेस. 1992 में अरविन्द केजरीवाल ने सिविल सर्विसेस का इम्तिहान दिया और लिखित परीक्षा में आसानी से कामयाब भी हो गए. लेकिन एक दिन अचानक भिवानी स्थित अपने घर पहुंचे और यह कह कर सबको चोंका दिया की में कुछ दिन के लिए घर छोड़ना चाहता हूँ मेरी चिंता मत करियेगा, में जहाँ भी रहूँगा ठीक रहूँगा उनके इस फैसले से उनकी माता गीता देवी और उनके समस्त घर वाले परेशान हुए लेकिन अरविन्द नहीं माने इसी बीच अरविन्द ने काफी सोचा कहाँ जाऊ किस्से मिलूं, ठन्डे दिमाग से सोचने के बाद असम के लिए ट्रेन पकड़ी लेकिन एक जादुई सी शक्ति उन्हें खीचते हुए कोलकाता तक ले आई जब होश संभला तो अरविन्द ने अपने आप को एक लाइन में लगा पाया, वहां सेकड़ों लोग मदर टेरेसा से मिलने का इन्तेजार कर रहे थे अरविन्द की बारी आई तो उन्होंने मदर टेरेसा से सिर्फ इतना कहा की माँ में आपके साथ कुछ काम करना चाहता हूँ मदर टेरेसा ने अरविन्द का हाथ थामा और बोली जाओ कुछ दिन काली बाड़ी में काम करो कोलकाता से अरविन्द केजरीवाल का बहुत भावनात्मक रिश्ता है एक 24 साल के नौजवान में इतना बूता होता है की टाटा स्टील जैसी नामी कंपनी से इस्तीफ़ा दे दे, सिविल सर्विसेस में चुने जाने के बाद घर छोड़ दे लेकिन अरविन्द केजरीवाल तो अपनी धुन में पक्के थे एक जज्बा था जो उन्हें कोलकाता तक ले आया मदर टेरेसा के आश्रम में अरविन्द केजरीवाल करीब दो महीने तक रहे, पैदल चलते चलते कोलकाता की सारी सड़कें नाप दी, जो गरीब बेसहारा उन्हें सड़क के किनारे पड़े नज़र आते उन्हें मदर टेरेसा के आश्रम में ले आते, यहाँ अरविन्द ने सीखा की जो बीमार हैं लाइलाज हैं उन्हें भी इज्जत से मौत पाने का अधिकार है, इसलिए जब तब हो सके उसकी सेवा करो कोलकाता की गरीबी और व्यवस्था की जवाबदेही ने अरविन्द केजरीवाल को झकझोरे के रख दिया कुछ दिनों के लिए उन्होंने राम कृष्ण मिशन में अपना हाथ बढाया, घर से दूर उस एहसास को जिया की घर न होने का मतलब क्या होता है, गरीब का मतलब क्या होता है, और देश के आम नागरिक को नर्क में धकेलते जा रहे सिस्टम का मतलब क्या होता है, करीब 6 महीने तक असम और पश्चिम बंगाल में रहने के बाद उन्होंने हरियाणा में कुछ दिन नेहरु युवा केंद्र के लिए भी काम किया इस बीच घर वालों ने खोजते खोजते उन्हें ये सन्देश पहुंचा ही दिया की सिविल सर्विसेस के इन्टरवियू की तारीख आ गयी है केजरीवाल घर पहुंचे इन्टरवियू दिया और कल तक कोलकाता की गलियों की खाक छान रहा ये शख्स इंडियन रेवेन्यु सर्विसेस के लिए चुन लिया गया. केजरीवाल ने पहला पद सम्भाला देश की राजधानी दिल्ली में अब वो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट कमिश्नर थे, भारी भरकम पद भारी भरकम रुतबा और उम्र सिर्फ 24 साल जल्द ही केजरीवाल को एहसास हो गया की वो गलत जगह पहुच गए हैं अरविन्द अपने साथियों से लगातार अपनी चिंता के बारे में बताते रहे लेकिन सभी ने यही सलाह दी की जल्दबाजी में कोई गलत फैसला न लो. वक्त बीतता गया केजरीवाल भीतर से छट पटाते रहे लेकिन वोह इस सिस्टम का हिस्सा बनने को तैयार नहीं थे नौकरी के 8 सालो ने अरविन्द में ये समझ पैदा की कि सरकारी सिस्टम कैसा काम करता है कैसा आम आदमी कि फाईले सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटती रहती हैं अरविन्द केजरीवाल ने बदलाब कि शुरुआत अपने घर से ही की, आयकर विभाग में फैली गंदगियों को सुधारने का बीड़ा उठाया हर किसी की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आता है जिसमे लिया गया फैसला आने वाली जिंदगी तय कर देता है केजरीवाल के लिए ये वक्त था साल 2000 का एक रात ऐसे ही उन्होंने अपने भाई और अपने रिश्तेदार से 50 हज़ार रुपये उधार लिए और परिवर्तन नाम कि संस्था कि नीव रख डाली, मकसद उन लोगो कि मदद करना था जिन्हें आयकर विभाग में छोटे छोटे काम के लिए घूस देनी पड़ती है अब अरविन्द केजरीवाल ने नौकरी में रहते हुए ही बिना अपना नाम सामने लाते हुए लोगो कि मदद करना शुरू की सिर्फ डेढ़ साल में परिवर्तन ने बिना घूस दिए 800 लोगो कि शिकायतें सुलझाई और अपने सीनिअर अफसरों को ये पता तक नहीं चलने दिया कि उनके बीच का ही कोई शख्स आम आदमी को इन्साफ दिला रहा है हांलाकि कुछ महीने बाद ही केजरीवाल को एहसास हो गया कि नौकरी और परिवर्तन दोनों एक साथ नहीं चल सकते हर तरफ भ्रस्टाचार था हर विभाग में भ्रस्टाचार था जो लोग पहले दलालों के पास जाते थे वोह अब बिजली, पानी, राशन कार्ड कि दिक्कतें लेकर उनके पास आने लगे, अरविन्द केजरीवाल को यहाँ जिंदगी का दूसरा और अहम् सबक मिला लोगो को खुद अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा संस्थाएं फौरी तौर पर तो मदद कर सकती हैं लेकिन समस्या को जड़ से ख़त्म करने के लिए आम आदमी को ही आगे आना होगा. इस हालात में अब आगे क्या अरविन्द केजरीवाल इस सवाल से उलझ ही रहे थे कि 2001 में दिल्ली सरकार ने सूचना का अधिकार कानून पास कर दिया. सूचना का अधिकार केजरीवाल के लिए बड़ी उम्मीद लेकर आया लेकिन जब अपने इस अधिकार के जरिये उन्होंने कुछ महकमों से जानकारी मांगी तो जबाब मिला कि महकमों को कानून का पता ही नहीं है दरअसल सरकार ने कानून बना तो दिया लेकिन उसे अमल में लाने के आदेश जारी ही नहीं किये. बिना तनख्वा के छुट्टी पर चल रहे अरविन्द केजरीवाल धरने पर बैठ गए, दबाब में आई सरकार को आखिरकार नोटिस जारी करना पड़ा अब केजरीवाल के पास अब तक का सबसे बड़ा हथियार था. दो साल से बिजली कन्नेक्शन नहीं लगा RTI डालो दस दिन में बिजली कन्नेक्शन लगेगा राशन कार्ड नहीं बना RTI डालो राशन कार्ड घर देकर जायेंगे वो भी बिना घूस. अरविन्द केजरीवाल ने घर -घर जाकर सुचना के अधिकार कानून के बारे में लोगों को समझाना शुरू किया जो अफसर फंसते वो उनका विरोध भी करते लेकिन बुलंद होंसले वाला इस शख्स ने कभी परवाह नहीं की जब एक दिन उनके एक साथी का गला काट दिया गया तब केजरीवाल को हकीकत का अंदाजा हुआ अगर सूचना का अधिकार कानून उन आम आदमी की मदद करता है तो हमारा ताकतवर सिस्टम उसका उतना ही विरोध भी करता है . केजरीवाल ने हिम्मत नहीं हारी वो लोगों को RTI एक्ट का फायदा उठाने के लिए समझाते रहे, लोगों में परिवर्तन होता उन्हें दिखा भी, 2004 के आसपास का वक्त था जब सियासी हलकों और प्रशासनिक अमलें, केजरीवाल को आयकर विभाग के जोइंट कमिश्नर के पद से ज्यादा एक RTI कार्यकर्ता के बारे में जाना जाने लगा, कुछ महीनो बाद ही केजरीवाल ने नौकरी के बंधन से मुक्ति पा ली, जब जंग लड़ना ही तो बंधन क्यों उन्होंने अपना आन्दोलन जारी रखा और कहा की सूचना का अधिकार पुरे देश में लागू किया जाये, आम आदमी के बीच जाकर केजरीवाल ने RTI एक्ट के समर्थन में माहोल बनाना शुरू कर दिया, नतीजा ये की आखिरकार साल 2005 में संसद ने सुचना का अधिकार पास कर दिया, केजरीवाल के कारण अब देश के आम आदमी के पास इतनी ताकत थी की वो अफसरों की नींद कुछ देर के लिए ही सही, उड़ा सकती थी, उनको जबाबदेह बना सकती थी. केजरीवाल ने शहर- शहर जाकर नौजवानों को इस कानून की बारीकियां समझायी, इस आन्दोलन की सफलता के चलते केजरीवाल को साल 2005 में मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया, CNN IBN ने उन्हें साल 2006 में इंडियन ऑफ द इयर का अवार्ड भी दिया. लेकिन परिवर्तन की जिद में केजरीवाल आगे ही बढते गए, मैग्सेसे पुरस्कार से मिले 45 लाख रुपये से उन्होंने एक दूसरी संस्था खडी कर दी नाम दिया पब्लिक कोंज रिसर्च फोंडेसन, संस्था देश भर के लोगो को RTI ACT व् तमाम दुसरे कानूनों से जुडी जानकारियों के बारे में समझाने का काम करती है
अगर एक कानून ने केजरीवाल की जिंदगी बदल डाली, तो वो अब जन लोकपाल के जरिये देश को बदलना चाहते है और उसके लिए आपका साथ चाहते है.
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