राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी की 11वीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के का
र्टून पर शुक्रवार को मचे हंगामे के बाद एनसीईआरटी के दो सलाहकारों ने अपना पद छोड़ दिया है.
योगेंद्र यादव और सुहास पालशिकर ने शुक्रवार देर शाम एनसीईआरटी के सलाहकार पद से इस्तीफ़ा दे दिया है....
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद [एनसीईआरटी] की पाठ्य पुस्तकों में प्रकाशित कार्टूनों को तमाम राजनेता भले ही आपत्तिजनक और नेताओं का उपहास उड़ाने वाला मान रहे हैं, लेकिन इन किताबों के शुरुआती पन्नों में ही यह स्पष्ट किया गया है, इन कार्टूनों का उद्देश्य महज हंसना-गुदगुदाना नहीं है। इनका अर्थ उससे कहीं अधिक है जितना ऊपरी तौर पर नजर आता है। ये कार्टून शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया का अंग हैं। घटनाओं के इस प्रकार के चित्रण से आपको किसी बात की आलोचना के साथ उसकी कमजोरी और संभावित सफलता के बारे में पता चलता है। हमें आशा है कि आप इन कार्टूनों का आनंद लेने के साथ उनके आधार पर राजनीति के बारे में सोचेंगे और बहस करेंगे। शायद यही कारण है कि कार्टूनों को लेकर उभरे विवाद पर अनेक बुद्धिजीवी बेचैन हैं।
बच्चों के दिमाग से कैसे निकलेंगे कार्टून?????
क्या है मसला???
साल 1949 में छपे इस कार्टून में डॉक्टर अंबेडर एक चाबुक लिए एक घोंघे पर बैठे हैं जबकि उनके पीछे उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी चाबुक लिए खड़े हैं. कार्टून का मकसद संविधान लिखने की प्रक्रिया में हुई कथित देरी को दर्शाना लगता है.
दरअसल एनसीईआरटी के 11वीं कक्षा की भारतीय संविधान पर पाठ्य पुस्तक में मशहूर कार्टूनिस्ट के शंकर पिल्लई का उकेरा एक कार्टून छपा है
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