आखिर कैसे निरधारण होता हैं डॉलर का रेट...पी पी पी क्या हैं...आइये थोडा विस्तार से बताते हैं इसे...
परचेजिंग पावर पेरिटी (पीपीपी)से मतलब दो देशों में किसी वस्तु या सेवा की कीमत से है। अर्थात किन्ही दो देशों में किसी वस्तु या सेवा की कीमत का अंतर क्या है इस बात का पता परचेजिंग पावर पेरिटी से लगाया जाता है।
यह करेंसी एक्सचेंज रेट तय करने में भी भूमिका निभाता है। पीपीपी से किसी देश की अर्थव्यवस्था के आकार का पता लगाया जाता है। पीपीपी का मतलब है कि एक डॉलर में दुनिया के किसी देशमें एक बराबर सामान खरीदे जा सकते हैं और कीमतों में अंतर के मुताबिक संबंधित देश की करेंसी की वैल्यू में बदलाव किया जाता है।
इसे आसान शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि एक डॉलर में सब जगह एक वस्तु सामान मात्रा में आनी चाहिए, लेकिन सभी देशों में यह अलग अलग होता है इसलिए मात्रा और कीमतों में जो अंतर होता है उसके आधार पर ही संबंधित देश की करेंसी की वैल्यू तय की जाती है।पीपीपी रेट के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आय की तुलना भी की जाती है।
अगर पीपीपी सही तरीके से रहे तो वास्तविक एक्सचेंज रेट भी समान रहेंगे। हालांकि कुछ देश कृत्रिम रूप से अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर देते हैं जिसके कारण पीपीपी पर आधारित एक्सचेंज रेट और वास्तविक एक्सचेंज रेट में अंतर आ जाता है। उदाहरण के लिए चीन को लिया जा सकता है जो अपनी मुद्रा का कृत्रिम अवमूल्यन करता रहता है
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यह करेंसी एक्सचेंज रेट तय करने में भी भूमिका निभाता है। पीपीपी से किसी देश की अर्थव्यवस्था के आकार का पता लगाया जाता है। पीपीपी का मतलब है कि एक डॉलर में दुनिया के किसी देशमें एक बराबर सामान खरीदे जा सकते हैं और कीमतों में अंतर के मुताबिक संबंधित देश की करेंसी की वैल्यू में बदलाव किया जाता है।
इसे आसान शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि एक डॉलर में सब जगह एक वस्तु सामान मात्रा में आनी चाहिए, लेकिन सभी देशों में यह अलग अलग होता है इसलिए मात्रा और कीमतों में जो अंतर होता है उसके आधार पर ही संबंधित देश की करेंसी की वैल्यू तय की जाती है।पीपीपी रेट के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आय की तुलना भी की जाती है।
अगर पीपीपी सही तरीके से रहे तो वास्तविक एक्सचेंज रेट भी समान रहेंगे। हालांकि कुछ देश कृत्रिम रूप से अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर देते हैं जिसके कारण पीपीपी पर आधारित एक्सचेंज रेट और वास्तविक एक्सचेंज रेट में अंतर आ जाता है। उदाहरण के लिए चीन को लिया जा सकता है जो अपनी मुद्रा का कृत्रिम अवमूल्यन करता रहता है
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