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Saturday, October 6, 2012

विवेकानंद का विश्व प्रसिद्द भाषण..!!!


अपनी तेज और ओजस्वी वाणी की बदौलत दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाने वाले वाले प्रेरणादाता और मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे|
"उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको..."
Swami Vivekanand Response to Welcome At The World’s Parliament of Religions Chicago, 11th September 1893...

अमेरिका के भाइयों और बहनों, जो आपने हमारा ससम्मान स्वागत किया, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ विश्व के सबसे प्राचीन संत की तरफ से.
मैं आपको धन्यवाद देता हूँ सभी धर्मो की माँ की तरफ से.
मैं आपको धन्यवाद देता हूँ करोड़ो विभिन्न जाती के और संप्रदाय के हिन्दुओं की तरफ से.
मैं उनको भी धन्यवाद देना चाहता हूँ यहाँ उपस्थित सभी लोगों को जाये आये हैं हमें अपने देश की संस्कृति और धर्म के बारे में हमें बताने.
मुझे गर्व है की मैं एक ऐसे धर्म से हूँ जिसने दुनिया को सिखाया-बताया धर्म और सर्वयापी सत्य के बारे में.
हम हिन्दू न न सिर्फ सर्वव्यापी सत्य में विश्वास रखते हैं बल्कि सभिधार्मो में विशवास रखते हैं.
मुझे गर्व है की में ऐसे देश की संतान हूँ जिसने विभिन्न देशो से निकले गए लोगों को न सिर्फ अपने देश शरण दी बल्कि उनको उनके धर्मो सहित गले से लगाया.
मुझे गर्व है ये बताने में की जब यहूदियों को उनके मूल देश से उन्हें निकाल दिया तब दक्षिण भारत ने उनको शरण दी न सिर्फ जमीन दी बल्कि उनके पूजा स्थल भी बनवाये और उनको भी उसी तरह सम्मान दिया जैसे की अपने देव-देवियों को. जबकि रोमन आक्रान्ताओं ने न सिर्फ
उनके पूजा स्थल -मंदिर तोड़ डाले बल्कि उनके धर्म ग्रन्थ भी जला दिए.
मैं एक बात आपको बताना चाहता हूँ जैसे की मैं और मुझसे पहले और भी बहुत से भारत के संतो ने कहा है की जैसे अलग-२ नदियाँ एक ही सागर में आके मिलती हैं ऐसे ही सारे सीधे-तिरछे रस्ते जिन पर मानव चलता है अंत में एक ही इश्वर से जा के मिलता है. मैं गीता के माध्यम से बताना चौंगा जो की इस बात का विश्वव्यापी प्रमाण है
” जो भी मेरे पास आता है वो कोई भी हो कैसा भी हो और कहीं से भी हो, अंत में मैं उस तक पहुँच ही जाता हूँ. वो चाहे कोई भी मार्ग चुने मुझसे मिलने के लिए वो मार्ग अंत में मुझसे मिल ही जाता है”
विभिन्न मान्यता वाले लोग, किसी और को न मानने वाले लोग, मानव से मानव में भेद करने वाले लोग, कट्टरता से अंधे लोग सभी एक ही प्रथ्वी के रहने वाले हैं.
वे लोग जिन्होंने प्रथ्वी को मानव रक्त से लाल किया, सभ्यताएं नष्ट कर दी, पुरे के पुरे देश मिटा दिए गए, इस तरह के राक्षस दुबारा से नहीं हों इसके लिए मानव समाज को आज से बहुत आगे आना चाहिए और यही वो समय है जब हम सभी एक लक्ष्य के लिए बजे अलग-२ विचारों को दुसरो पर थोपने (तलवार या कलम से ) की बजाये,मानव से मानव के बीच के अविश्वास को धीरे-२ ख़त्म कर देना चाहिए.

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