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Friday, October 5, 2012

आकाशवाणी की दुनिया...Knowledge...!!!

आजकल के एकदम साफ़ आवाज़ वाले एफ़.एम. रेडियो चैनलों और उन पर बड़ी शोख़ अदाओं में बोलने वाले उद्घोषकों से बिल्कुल अलग आकाशवाणी की बीती दुनिया थी। उस समय हम अपने रेडियो सेट पर लगे बटन को घुमा-घुमा कर स्टेशन पकड़ने की कोशिश किया करते थे। इन स्टेशन में सबसे लोकप्रिय था विविध भारती।

“मीडियम वेव 1368 किलोहर्ट्ज़ पर ये विविध भारती की विज्ञापन प्रसारण सेवा का दिल्ली केन्द्र है। सात बज कर तीस मिनट हुआ चाहते है… अब आप सुनेंगे…”

चर्र-मर्र सुर्र-सर्र करते ट्रांजिस्टर से आती यह आवाज़ हमारे ज़हन में हमेशा के लिए छप चुकी है। 2 अक्तूबर 1957 को पहली बार विविध भारती से प्रसारण आरम्भ हुआ था। हर दिन करीब 15 से 17 घंटे तक मनोरंजक कार्यक्रम सुनाने वाले इस स्टेशन से फ़िल्मी गीतों, छोटे-छोटे नाटकों के अलावा कई तरह के ज्ञानवर्धक कार्यक्रम भी प्रसारित होते थे।

“पानीपत से सुरेश, मुकेश, सोनी, मुन्नी, पप्पू, झुमरी तिलैया से विकास, राधा, सुहासिनी, महेंद्र और उनके मित्र, आगरा से संतोष यादव, दिल्ली से बंटी, गुरदीप, मोहन, लक्ष्मी और उनके परिवार के सभी सदस्यों की फ़रमाइश अब सुनिए मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में फ़िल्म नील कमल का यह गीत। बोल लिखे हैं शकील बदायूंनी ने और संगीत है रवि का”

बहुत से लोग सोचते हैं कि झुमरी तिलैया एक काल्पनिक जगह का नाम है –लेकिन क्या आप जानते हैं कि झुमरी तिलैया का अस्तित्व वास्तव में है? यह झारखंड के कोडरमा जिले में एक छोटा-सा कस्बा है जिसकी आबादी अब 70 हज़ार के करीब है। यहाँ के निवासियों के रेडियो प्रेम ने इस कस्बे के नाम को इतना मशहूर कर दिया कि आज भारत का बच्चा-बच्चा झुमरी तिलैया के नाम से वाकिफ़ है!

झुमरी तिलैया के लोग विविध भारती को बड़ी संख्या में फ़रमाइश भेजने के लिए जाने जाते हैं। यहाँ के निवासी रामेश्वर बर्णवाल का नाम तो लगभग हर रोज़ विविध भारती के किसी न किसी कार्यक्रम में फ़रमाइश-कर्ता के रूप में आता था। उस समय झुमरी तिलैया के लोगों के बीच एक प्रतियोगिता-सी लगी रहती थी कि कौन व्यक्ति अधिक फ़रमाइशी पत्र विविध भारती को भेजेगा। झुमरी तिलैया के निवासियों ने इतने फ़रमाइशी पत्र भेजे कि भारत में जन-जन की ज़ुबान पर इस छोटे से कस्बे का नाम चढ़ गया।

विविध भारती सुदूर सीमाओं पर तैनात हमारे जवानों के लिए भी मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन था। इसलिए विविध भारती ने सैनिकों के लिए “जयमाला” नाम से फ़िल्मी गीतों का एक विशेष कार्यक्रम शुरु किया हुआ था। फ़ौजी भाई आकाशवाणी को पत्र लिखकर अपनी फ़रमाइश भेजते थे और उनकी फ़रमाइश को पूरा करते हुए विविध भारती रोज़ शाम को सात बजे वही गीत बजाया करता था। “लांसनायक”, “सूबेदार”, “हवलदार”, “सिपाही” –फ़ौजी भाइयों के ये सब पदनाम आपने जयमाला में अक्सर सुने होंगे! कभी-कभी “विशेष जयमाला” नाम से इस कार्यक्रम का विशेष अंक प्रसारित किया जाता था जिसमें प्रसिद्ध कलाकार (जैसे कि लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, राज कुमार इत्यादि) आकर फ़ौजी भाईयों का अत्साहवर्धन करते थे और उन्हें अपनी पसंद के गीत सुनवाते थे।

बिनाका गीतमाला (जो बाद में सिबाका गीतमाला बन गया था) भी एक बेहद प्रसिद्ध कार्यक्रम था। अमीन सायानी ने इस कार्यक्रम को 1952 से 1994 तक लगातार प्रस्तुत किया।

“बहनों और भाईयों, अब बारी आती है उस गीत की जो पिछले हफ़्ते पाँचवीं पायदान पर था लेकिन इस बार यह दो पायदानों की छलांग लगा कर आ पहुँचा है नम्बर तीन पर”

बिनाका गीतमाला 1952 से 1988 तक रेडियो सिलोन से प्रसारित होता था; फिर 1989 से 1994 तक यह विविध भारती से प्रसारित हुआ। इस कार्यक्रम में हिन्दी सिनेमा के तत्कालीन गीतों को लोकप्रियता के क्रम में सुनवाया जाता था। बिनाका गीतमाला के श्रोताओं की संख्या 9 लाख से 20 लाख के बीच रही। 1953 से लेकर 1993 तक वर्ष का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत भी बिनाका गीतमाला में घोषित किया जाता था।

प्रथम वर्ष (यानी 1953) का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत बैजू बावरा फ़िल्म से था; “तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा”

अंतिम वर्ष (यानी 1993) का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत खलनायक फ़िल्म से था; “चोली के पीछे क्या है, चुनरी के नीचे क्या है”

इस जानकारी के आधार पर ही आप देख सकते हैं कि हमारी फ़िल्मों के गीत-संगीत में कितने बड़े पैमाने पर बदलाव आया है!

छोटी-छोटी कहानियों और नाटकों को सुनवाता था रात 9:30 बजे आने वाला कार्यक्रम “हवा महल” … आइये आपको हवा महल की कड़ी सुनवाता हूँ। इसमें आप हवा महल की शुरुआत में आने वाली धुन भी सुन सकेंगे… इस कड़ी में सुनवाए गए नाटक का नाम है “मेहमान भगाऊ नुस्ख़े”

हवा महल के बाद रात दस बजे “छाया गीत” प्रसारित हुआ करता था –जिसमें पुराने सुमधुर फ़िल्मी गीतों को सुनवाया जाता था। गर्मी के दिनों में छत पर बिछे बिस्तर पर लेटे हुए इन गीतों को सुनते-सुनते कब आंख लग जाती थी पता ही नहीं चलता था।

शुक्रवार की शाम को फ़िल्मी कव्वालियों का एक कार्यक्रम आया करता था। बरसात की रात फ़िल्म की कव्वाली “ना तो कारवाँ की तलाश है” को मैंने पहले-पहल इसी कार्यक्रम में सुना… और फिर तो इस रचना का मुरीद होकर रह गया।

हरियाणवी रागनियों का एक कार्यक्रम भी विविध भारती के दिल्ली केन्द्र से प्रसारित होता था। मांगेराम, लखमीचंद, नीलम की गाई हुई रागनियाँ एक अलग ही समां बांध देती थीं।

मेरा एक और पसंदीदा कार्यक्रम रविवार को दोपहर दो बजे आता था… “चुन्नु पढ़ता डायमंड कॉमिक्स, मुन्नी पढ़ती डायमंड कॉमिक्स… मजेदार ये डायमंड कॉमिक्स” की धुन से शुरु होने वाले इस कार्यक्रम में डायमंड कॉमिक्स की कहानियों के बारे में बताया जाता थ। चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी इत्यादि किरदारों की आने वाली कॉमिक्स का विज्ञापन इस कार्यक्रम के ज़रिए होता था।

इनके अलावा भी ढ़ेरों कार्यक्रम हैं जो रेडियो और विविध भारती के स्वर्णिम दिनों से आज तक हमें याद हैं। भूले बिसरे गीत, बाइस्कोप की बातें, संगम, सेहतनामा, हैलो फ़रमाइश, पिटारा इत्यादि बहुत से कार्यक्रम सुनना हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गए थे। ऐसा नहीं है कि आज रेडियो या विविध भारती नहीं है –लेकिन आज समय बदल चुका है… ज़िन्दगी तेज़ हो गई है… लोगों की पसंद बदल गई है… पर हम भाग्यशाली हैं कि हमनें रेडियो के उन स्वर्णिम दिनों को देखा है।

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