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Thursday, October 4, 2012

फाउंटेन पेन के बढ़ते शौकीन....!!!

फाउंटेन पेन के बढ़ते शौकीन....
जो लोग अपने लिए फाउंटेन पेन खरीदते हैं, उनका कहना है, “मैंने पुराने अंदाज में लिखना चाहता हूं.”
फाउंटेन पेन को जहां एक तरफ बॉलपॉइंट पेन से जूझना पड़ा है, वहीं उसे ईमेल और इलेक्ट्रॉनिक मैसेजिंग के कारण हाथ से लिखने की लोगों की कम होती आदत से भी निपटना पड़ रहा है.
बहुत से लोगों के लिए निब वाला यानी फाउंटेन पेन बचपन की यादों को ताजा करने जैसा है कि जब स्कूल में पेन को चलाते वक्त ऊंगलियां भी स्याही से रंग जाती थीं...
आप समझते होंगे कि ईमेल और बॉलपॉइंट पेन ने फाउंटेन पेन को मार दिया है. लेकिन ऐसा नहीं है. अब फिर फाउंटेन पेन की बिक्री बढ़ रही है जो इस बात की अच्छी मिसाल है कि पुराने जमाने की चीज तेजी से बदलते दौर में किस तरह खुद को बचाए हुए है.
1888 से फाउंटेन पेन बनाने वाली कंपनी पार्कर का कहना है कि पिछले पांच साल के दौरान ये पेन "फिर आ खड़ा हुआ है" जबकि पार्कर की प्रतिद्वंद्वी लामी कंपनी के मुताबिक 2011 में उसकी सालाना आमदनी में पांच प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
ऑनलाइन चीजें बेचने वाली वेबसाइट अमेजन का कहना है कि इस साल अब तक उनकी फाउंटेन पेन की ब्रिकी पिछले साल इसी अवधि के मुकाबले दोगुनी हो गई है. 2010 के मुकाबले कंपनी की फाउंटेन पेन की ब्रिकी चार गुनी हो गई है.
स्टेशनरी की दिग्गज कंपनी रेमन का कहना है कि पिछले छह हफ्तों के दौरान उसकी फाउंटेन पेन की ब्रिकी में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
शानो शौकत वाली चीज
हालांकि बिक्री में वृद्धि का ये मतलब नहीं है कि सब लोग फाउंटेन पेन से ही लिखने लगेंगे. बॉलपॉइंट पेन की बिक्री स्थिर बनी हुई है.
किसी जमाने में फाउंटेन पेन का दबदबा हुआ करता था लेकिन 1960 के दशक आते आते बॉलपॉइंट पेन की तकनीक आई गई और फाउंटेन पेन पिछड़ गए. लेकिन फाउंटेन पेन मरा नहीं. बस उसे लेकर लोगों की सोच बदल गई और बदल रही है.

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