कुछ टूटी फूटी पंक्तियाँ थी हमारे जेहन में हमने उसे लयबद्ध किया हैं...
"कमीज में खून छुपाने की ये रीत पुरानी हैं,
दर्द से काँप उठे लफ्ज ए दोस्त,
आज उनकी समताओ का वर्णन करना,
शायद ये उनकी सरफरोसी से बेमानी हैं,
दिलेरी तो ऐसी हैं जैसे भीड़ जाए सिंह से,
पर गिर गए फूल बिन देखे ढेरो बसंत ए दोस्त,
यह उसी यौवन में लिखी कभी की गीत पुरानी हैं.."
कुछ पहल की भी गयी थी की इस हीरो के सिक्के निकले जाएंगे. केंद्र सरकार द्वारा की गयी दुरगति या किन्हें कारणवस ...वो सिक्के बन तो गए पर लोगों के बीच न आ सके ..क्या करे इन्हें घोटालो और अपने निजी गाँधी परिवार का गुडगान करने से फुर्सत मिले तब तो |
A Striker Salute to our Bhagat Singh,Rajguru,Sukhdev..
Let have throw a simple glimpse on those pages printed red mark with these..Braves..
Jai Hind..
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