Coupvray(france) में जन्मे लुई ब्रेल (4 January 1809 – 6 January 1852) ब्रेल लिपि के जन्मदाता थे. ब्रेल लिपि वो माध्यम है जिस से नेत्रहीन व्यक्ति पढ़ते या लिखते हैं. बचपन में अपने पिता के दुकान में, एक लेदर की कोट में, सुई से छेद करते वक़्त, उनकी आँख में चोट लगने से अपने दोनों आँखों को खो देने वाले ब्रेल ने हार नहीं मानी और अपने कमजोरी (नेत्रहीनता) पर काबू पाया. इतना ही नहीं अपने युवा दिनों में ब्रेल ने वो क्रांतिकारी परिवर्तन लाया, जिस से उन्होंने कई नेत्रहीन व्यक्तियों की जिंदगी बदल दी. दो दशकों बाद ब्रेल लिपि दुनिया भर में तेज़ी से फैली और फिर यही पद्यति नेत्रहीन व्यक्तियों के बोलचाल, पढने और लिखने में बहुत मददगार साबित हुई. आज कई नेत्रहीन व्यक्ति इस लिपि के ही मदद से शिक्षित हो सके हैं. निश्चित ही सभी नेत्रहीन अपनी सफलता के पश्चात मन ही मन लुई ब्रेल को जरुर धन्यवाद देते होंगे.
सम्मान एवं श्रधांजलि:-
ब्रेल के पैतृक घर को एक ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया गया.
आज भले ही ब्रेल हमारे बीच नहीं हैं. पर जो उपकार उन्होंने नेत्रहीनो पर किया है उस से वो युगों युगों तक जीवित रहेंगे…
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